newreck
1 min readAug 11, 2021

--

शाम हुई और उनका ख्याल आया,
कश्मकश में पड़ गया मन, कैसे छेडुं बातों का सिलसिला,

क्या पूछ लूँ, मेरे बारे में कही सोचा तो नही,
पर वो क्यों सोचेंगी मुझ बैरागी के बारे में?
क्या बोल दूँ, कितना अच्छा लगता है, उनके आस पास रहना,
पर क्या बोलेंगी बच्चों सि बातें करते हो?
क्या एक कविता भेजू उन्हें, हाले दिल बयां करके,
पर कही कविता उन्हें नापसंद तो नही?
क्या मिलने चला जाऊं किसी बहाने से,
पर वो ना समझें की हर रोज़ क्यों ये आते हैँ?
कश्मकश में शाम रात बन गयीं,
मन बेमन से ऑंखें लग गयीं,

कह दी फिर सारी दिल की बातें,
मिल के हाथों में हाथ ले लिए,
शिकायत की उनसे खुलके,
हाले दिल उन्हें समझाया,
बात इतनी सि क्या हुई,
दरिया, समंदर बन गया,
प्यार प्यार हर तरफ भर गया,
हाथो में हाथ रखा ही था,
सिलसिला खयालों का फिर टूट गया,
खुली ऑंखें तो सब कुछ पीछे छूट गया..

शाम हुई और उनका ख्याल आया,
कश्मकश में पड़ गया मन,
कैसे छेडुं बातों का सिलसिला..

--

--